मैं अक्सर सोचता हूँ
क्या वो मुझको सोचता होगा?
पलट के देखता हूँ
क्या वो मुझको देखता होगा?
मैं अक्सर सोचता हूँ
इत्तेफकान मुझसे मिलने को
कहीं ख्वाबों के रस्तों पे
संदेसे फेंकता होगा?
मैं अक्सर सोचता हूँ
क्यूँ मैं उसकी राह को देखूं
जहाँ छोड़ा था उसकोवो वहां से चल पड़ा होगा
मैं अक्सर सोचता हूँ
सच नहीं है, झूठ ही होगा
वो जैसा दुनिया कहती है
क्या उतना ही बुरा होगा?
मैं अक्सर सोचता हूँ
ये जो मेरे दिल का नश्तर है
है जिसकी उँगलियाँ थामें
क्या उसको भी चुभा होगा?
9 comments:
क्या कहने...
ये जो मेरे दिल का नश्तर है
है जिसकी उँगलियाँ थामें
क्या उसको भी चुभा होगा?
वल्लाह!!!
very nice
मैं अक्सर सोचता हूँ
क्या वो मुझको सोचता होगा?
यही जवाब तो आता नहीं,गुज़र गया वक्त इंतज़ार करते-करते।
लाजवाब रचना नीलेश जी।
Aaaah!
मैं अक्सर सोचता हूँ
इत्तेफकान मुझसे मिलने को
कहीं ख्वाबों के रस्तों पे
संदेसे फेंकता होगा?
B'ful thought Neelesh ji!!!
n BTW missing Yaad Sheher... waiting for its second season... :)
really nice sir,,,,,,,,,,,,!!!!!!!!!!
awesome! neelesh sir, I wish,I could write like you.....Great way of penning the heart on empty pages.
Always love you and Thank you for being my Inspiration.
wah..!!!amazing..!!!!
kash mai bhi apne dil ki baat itnay aasani se paper par likh paati...
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