Tuesday, August 31, 2010

याद होगा तुम्हे ये गीत ...



मैं धूप में था, वो छांव में

मैं आसमां, वो हवाओं में

थे संग हम फिर भी दूर थे

भंवर थे दोनों के पाँव में

कभी तो वापस फिर आयेंगे

वो लम्हे ख्वाबों के गाँव में

वो खूबसूरत सी दोपहर

वो शाम संग तेरे मुक्तसर

रखा है उस पल का नाम भी

लो हमने अब तेरे नाम पर

चले भी आओ हैं ढूँढ़ते

तुम्हें हजारों दिशाओं में

कभी तो वापस फिर आयेंगे

वो लम्हे ख्वाबों के गाँव में


मैं करवटों में उलझ गया

मैं रात भर कल सो सका

मैं उस को हर पल हूँ ढूँढता

जो पल हमारा हो सका

रोको अब मैं हूँ डूबता

जाने कैसी खलाओं में

कभी तो वापस फिर आयेंगे

वो लम्हे ख्वाबों के गाँव में


हमारी तकलीफ सोच कर

था रोना चाहा, रो सका

ज़रा से मासूम ख्वाब का

गले में किरचा अटक गया

है कहने को कितना कुछ मगर

बताओ कैसे सुनाऊं मैं

कभी तो वापस फिर आयेंगे

वो लम्हे ख्वाबों के गाँव में

(All photos by the author, except when credit mentioned otherwise)