सोचता हूँ कि काश तुम होते
कम से कम तन्हा ना ये ग़म होते
सोचता हूँ कि वो कैसे टूटा
क्यूँ ना जाना कि रिश्ता कांच का था
गीली मिट्टी की तरहा फिसल गया
दोष मिट्टी का था कि हाथ का था?
काश इतने सवाल ना होते
कुछ तो तकलीफज़दा कम होते
सोचता हूँ कि काश तुम होते
कम से कम तन्हा ना ये ग़म होते
सोचता हूँ कि कैसे होगे तुम
जो मिलूंगा तो क्या कहोगे तुम
जो कहूँगा, कि याद करते हो?
सच कहोगे कि चुप रहोगे तुम?
काश फिर याद के कोहरे होते
काश फिर बातों के मौसम होते
सोचता हूँ कि काश तुम होते
कम से कम तन्हा ना ये ग़म होते