Friends ... For the national book tour of "The Absent State", I wrote a ghazal that is a tribute to Mirza Ghalib, and in a long-standing tradition of Urdu poetry, takes the mukhda (top two lines) of the original and rewrites the rest as a take on modern India. Many friends who heard it live have asked for the lyrics. So here goes: To be sung to the tune of Jagjit Sungh's original ...
हजारों ख्वाहिशें ऐसीं, की हर ख्वाहिश पे दम निकले
बहुत निकले मेरे अरमान, लेकिन फिर भी कम निकले
सुना था वक़्त की मुट्ठी में
खुशियों के खजाने हैं
तो फिर कमबख्त क्यूँ देहलीज़ पे है
रख के ग़म निकले
बहुत निकले मेरे अरमान लेकिन
फिर भी कम निकले ...
बने हो रहनुमा जो तुम
तो बातें रहनुमा की हों
क़सम खाना कुछ इस तरहा
के झूठी हर क़सम निकले
बहुत निकले मेरे अरमान लेकिन
फिर भी कम निकले ...
सुना था किस्मतें बदलेंगी
कर लेते सबर हम भी
ज़रा सी थी ख़ुशी मांगी
ज़रा से लम्हे कम निकले
बहुत निकले मेरे अरमान लेकिन
फिर भी कम निकले ...
हैं तनहा हम, मगर चलते रहेंगे
देख लेना तुम
ये दुनिया भी चलेगी कल
जहाँ से आज हम निकले
बहुत हा मेरे अरमान लेकिन
फिर भी कम निकले ...
हज़ारों ख्वाहिशें ऐसीं की
हर ख्वाहिश पे दम निकले
बहुत निकले मेरे अरमान लेकिन
फिर भी कम निकले ...
29 comments:
wah!
बहुत खूब। एक शायर को इससे बेहतर खिराज क्या होगा।
बहुत खूब लिखा है निलेश जी ..आगे मेरे दिल में भी लिखने का ख्याल कुलबुलाने लगा है... लिखूंगा तप पोस्ट करूँगा... माफ़ करियेगा निलेश जी
mukkarrar...
mukkarrrar....
Speechless, Neelesh. Awesome! Amazing!! Something has started brewing within.
wow...aap ko blog par dekh achcha laga...kisi ne aapka bakwaas parasti karte hain.....padhaya tha...Miyan Galib gar aaj hote to na jane kya kahte .....khair ham to khush hue :-)
kya baat hai...amazing :)
behad umda
बने हो रहनुमा जो तुम
तो बातें रहनुमा की हों
क़सम खाना कुछ इस तरहा
के झूठी हर क़सम निकले
बहुत निकले मेरे अरमान लेकिन
फिर भी कम निकले ...
::
Misra Ghalib ka ho...
Par
Har ek ki kaifiyat apni apni..
::
:) :)
Love Masto..
good..
इस गजल के पहले शेर के दूसरे मिस्रे को समझने में तकलीफ हुई। दूसरा और चौथा शेर तो बहुत पसंद आया।
wah wah very nice..
flower delivery
kya khhub likha mirza gaalib sabhab ne maja aa gaya......
bahut khoob..
Dil ke behad kareeb pahuchi aapki baat. pahle wali se behtar lagi kuch lines...
damn! this is beautiful!! :)
oh by the way, maine dil se kaha and kya mujhe pyar hai... my all time fav, from recent years... just thought should tell you! :)
sahi me dil jeet liya aapne to ............
nice and thought provoking so scribbled few lines
सुना था वक़्त की मुट्ठी में खुशियों के खजाने है
बस उन्हें ही खोलने में दम निकले
निकलने चले थे अरमा दिल के
की क्या करे जहा हम पहुचे वहा पहले ही तुम निकले
कसमे खाई थी तुमने अबतलक इतनी की
आखिर उन्हें निभाने को हम निकले चाहे इसी कोशिश में दम निकले
बदलती किस्मत से फुर्सत मिलते ही
सोचा था थोड़ी ख़ुशी चख ले
गम को किसी पुराने भगोने में ढक दे
निकलने चले थे अरमा दिल के
की क्या करे जहा हम पहुचे वहा पहले ही तुम निकले
wah neelesh ji...
awesome.....a really befitting tribute !!!
बेहतरीन सर जी
हर बात पे हर ख्वाहिश पे
ना जाने हर दम में भी
दम ना निकले
Beautiful lyrics and Rendition of "Hazaaro Khwahishein Aisi" by Mr. Neelesh Misra at First Ever Yaad Sheher Reunion at CMYK Store, New Delhi. Watch it on youtube at :
http://youtu.be/l3gUQn_5Meo
बने हो रहनुमा जो तुम
तो बातें रहनुमा की हों
क़सम खाना कुछ इस तरहा
के झूठी हर क़सम निकले
दिल है जिंदा आपका ये है खासियत,
वर्ना घुट जके मर जाइए आम होने के लिए...
एक सुबह तो चाहिए शाम होने के लिए
कुछ हुनर दिखलाइये नाकाम होने के लिए ...
कसमे खाई थी तुमने अबतलक इतनी की
आखिर उन्हें निभाने को हम निकले चाहे इसी कोशिश में दम निकले
बदलती किस्मत से फुर्सत मिलते ही
सोचा था थोड़ी ख़ुशी चख ले
गम को किसी पुराने भगोने में ढक दे
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