मैं अक्सर सोचता हूँ
क्या वो मुझको सोचता होगा?
पलट के देखता हूँ
क्या वो मुझको देखता होगा?
मैं अक्सर सोचता हूँ
इत्तेफकान मुझसे मिलने को
कहीं ख्वाबों के रस्तों पे
संदेसे फेंकता होगा?
मैं अक्सर सोचता हूँ
क्यूँ मैं उसकी राह को देखूं
जहाँ छोड़ा था उसकोवो वहां से चल पड़ा होगा
मैं अक्सर सोचता हूँ
सच नहीं है, झूठ ही होगा
वो जैसा दुनिया कहती है
क्या उतना ही बुरा होगा?
मैं अक्सर सोचता हूँ
ये जो मेरे दिल का नश्तर है
है जिसकी उँगलियाँ थामें
क्या उसको भी चुभा होगा?