Friday, July 15, 2011

बग़ावत होगी इक दिन, तब मिलेंगे

किसी ने कर दिया छलनी है मुझको

कहीं पे जा के वो बैठा हुआ है

न रो इतना, कि तेरे आंसुओं पे

मेरा कातिल कहीं पे हँस रहा है

बचा के रख तू ये तकलीफ अपनी

धधकने दे इसे, शोले खिलेंगे

बस इतना कह दे जा के रहनुमा से

बग़ावत होगी इक दिन, तब मिलेंगे

Tuesday, July 12, 2011

रात के खामोश घर के सामने


रात के खामोश घर के सामने

हाथ भर जुगनू धरे हैं शाम ने

फिर से तेरे रास्ते चलता हूँ मैं

फिर पुकारा मुझ को तेरे नाम ने

रात के खामोश घर के सामने ...

Sunday, July 10, 2011

एक कहानी और मैं ज़िद पे अड़े



एक कहानी और मैं

ज़िद पे अड़े

दोनों में से कोई ना

आगे बढ़े

वो है कहती क्या समझता

ख़ुद को तू?

मैं नहीं तो क्या है तू

ऐ नकचढ़े?

वो ये चाहे अपनी किस्मत

ख़ुद लिखे

मैंने बोला देखे तुझ

जैसे बड़े

है क़लम मेरी, मैं जो

चाहे लिखूं!

मेरी मर्ज़ी, जिस तरफ ये

चल पड़े!

झगड़ा ना सुलटेगा लगता

सारी रात

देखते हैं होगा क्या जब

दिन चढ़े

हैं हज़ार-एक लफ्ज़ लिख के

हम खड़े

एक कहानी और मैं

ज़िद पे अड़े


(All photos by the author, except when credit mentioned otherwise)