इस गीत की कुछ पंक्तियाँ मैंने काफ़ी पहले लिखी थीं ... मुंबई के आतंकवादी हमले के बाद इसे पूरा किया. आपके साथ फिर से बाँट रहा हूँ. इसे एन डी टी वी पर संगीतबद्ध कर के दिखाया जा रहा है.
रेत में सर किए
यूँ ही बैठा रहा
सोचा मुश्किल मेरी
ऐसे टल जाएगी
और मेरी तरह
सब ही बैठे रहे
हाथ से अब ये दुनिया
निकल जाएगी
दिल से अब काम लो
दौड़ कर थाम लो
ज़िन्दगी जो बची है
फिसल जाएगी
थोडी सी धूप है
आसमानों में अब
आँखें खोलो नहीं तो
ये ढल जाएगी
आँखें मूंदें है ये
छू लो इसको ज़रा
नब्ज़ फिर ज़िन्दगी की
ये चल जाएगी
दिल से अब काम लो
दौड़ कर थाम लो
ज़िन्दगी जो बची है
फिसल जाएगी
रेत में सर किए
यूँ ही बैठा रहा
सोचा मुश्किल मेरी
ऐसे टल जाएगी
और मेरी तरह
सब ही बैठे रहे
हाथ से अब ये दुनिया
निकल जाएगी
कई साथियों के कंप्यूटर हिन्दी शब्दों को नहीं दिखाते हैं, इसलिए अगली पोस्ट में अंग्रेज़ी में भी शब्द लिख रहा हूँ.
चित्र साभार: राहुल पंडिता