Saturday, August 18, 2012

गुलज़ार साहब के जन्मदिन पर


शाम का टुकड़ा
धूप  का कोना
सिरा नींद का
मन का बिछौना
उखड़ी उखड़ी सी दोपहरें
शाम लगाये  आँख  पे पहरे
रात महल में ख्वाब न ठहरे
आज का दिन बेज़ार लिखा है
लेकिन तेरी ग़ज़ल के ज़ेवर
पहन के बदले रात के तेवर
तन्हाई भी अब महफ़िल है
लम्हों पर गुलज़ार लिखा है

 जन्मदिन मुबारक, गुलज़ार साहब!

-- आपका एकलव्य, नीलेश 
(All photos by the author, except when credit mentioned otherwise)