Saturday, January 1, 2011

2011: फिर नया साल और पुराना मैं



फिर नया साल और पुराना मैं
फिर चला लेके ताना बाना मैं ...

मैंने आखिर भुला दिया है सब
तेरे सजने की कवायद की खनक
तेरी परियों की सजावट सी चमक
तेरी खामोश निगाही का सबब
तेरी दस्तक की ज़बां का मतलब
मैंने आखिर भुला दिया है सब
यूँ भी थोडा ही तुझको जाना मैं
फिर चला लेके ताना बाना मैं
फिर नया साल और पुराना मैं ...

सच तो ये है कि सच है इतना सा
आधे हम तुम थे ग़लत, आधे सही
लम्हे बिखरे थे, हमने बांधे नहीं
शाख पे दूरियों की फल आया
चख के न देखा ज़हर कितना था
सच तो ये है कि सच है इतना सा
सच से लेकिन हूँ अब डरा ना मैं
फिर चला लेके ताना बाना मैं
फिर नया साल और पुराना मैं ...

वक़्त कहता है, टूट जाऊँगा मैं
टुकड़ा इक थामे है, कालिख का है
गिर जा, हाथों पे वक़्त लिखता है
गिर के भी किरचे फिर उठाऊंगा मैं
जोड़ के खुद से खुद को लाऊंगा मैं
वक़्त कहता है, टूट जाऊँगा मैं
वक़्त की ज़िद कभी न माना मैं
फिर चला लेके ताना बाना मैं
फिर नया साल और पुराना मैं ...


मुझे है आया कहाँ प्यार का ढब
न मैंने दिल के तरीके सीखे
न ही रिश्तों के सलीके सीखे
हैं नुमाइश पे लम्हे आज भी सब
पर इन से ऊब गया जाने कब
मुझे है आया कहाँ प्यार का ढब
मुझको न देख तू, बेगाना मैं
फिर चला लेके ताना बाना मैं
फिर नया साल और पुराना मैं ...


(All photos by the author, except when credit mentioned otherwise)