फिर नया साल और पुराना मैं
फिर चला लेके ताना बाना मैं ...
मैंने आखिर भुला दिया है सब
तेरे सजने की कवायद की खनक
तेरी परियों की सजावट सी चमक
तेरी खामोश निगाही का सबब
तेरी दस्तक की ज़बां का मतलब
मैंने आखिर भुला दिया है सब
यूँ भी थोडा ही तुझको जाना मैं
फिर चला लेके ताना बाना मैं
फिर नया साल और पुराना मैं ...
सच तो ये है कि सच है इतना सा
आधे हम तुम थे ग़लत, आधे सही
लम्हे बिखरे थे, हमने बांधे नहीं
शाख पे दूरियों की फल आया
चख के न देखा ज़हर कितना था
सच तो ये है कि सच है इतना सा
सच से लेकिन हूँ अब डरा ना मैं
फिर चला लेके ताना बाना मैं
फिर नया साल और पुराना मैं ...
वक़्त कहता है, टूट जाऊँगा मैं
टुकड़ा इक थामे है, कालिख का है
गिर जा, हाथों पे वक़्त लिखता है
गिर के भी किरचे फिर उठाऊंगा मैं
जोड़ के खुद से खुद को लाऊंगा मैं
वक़्त कहता है, टूट जाऊँगा मैं
वक़्त की ज़िद कभी न माना मैं
फिर चला लेके ताना बाना मैं
फिर नया साल और पुराना मैं ...
मुझे है आया कहाँ प्यार का ढब
न मैंने दिल के तरीके सीखे
न ही रिश्तों के सलीके सीखे
हैं नुमाइश पे लम्हे आज भी सब
पर इन से ऊब गया जाने कब
मुझे है आया कहाँ प्यार का ढब
मुझको न देख तू, बेगाना मैं
फिर चला लेके ताना बाना मैं
फिर नया साल और पुराना मैं ...
27 comments:
जोड़ के खुद से खुद को लाऊंगा मैं..
At times there are certain instances which provide you the critically desired strength to cope with your contemporary situations..
This line gives me that strength..I'll surely make a comeback..
जोड़ के खुद से खुद को लाऊंगा मैं..
Thanx a lot!!
Swati: Shukriya!
बेहतरीन सर....
आपका सेव टाइगर कैंपेन भी अच्छा लगा... और नाइन का प्रोमो भी बहुत बढ़िया है....... यूट्यूब पर देखे थे..... लेकिन अभी नाइन का ज्यादा कुछ नहीं मिल रहा है..... मैं आपसे ऐसे ही सीखता रहता हूं.... शुक्रिया.....
main to pahli do panktiyon mein hi kho gayi...man se man tak hai!
एक बाजू उखड गया जबसे
और दूना वज़न उठाता हूँ .... नीलेश जी. बहुत अच्छी कविता है.
एक बाजू उखड गया जबसे
और दूना वज़न उठाता हूँ .... नीलेश जी. बहुत अच्छी कविता है.
सच तो ये है कि सच है इतना सा
आधे हम तुम थे ग़लत, आधे सही
लम्हे बिखरे थे, हमने बांधे नहीं
शाख पे दूरियों की फल आया
चख के न देखा ज़हर कितना था
love these lines sir
just read it
regards,
Priya
वक्त की जिद कभी न माना मैं...वाह शानदार पंक्तियां...पूरी कविता ने बांधे रखा। नीलेश जी शुक्रिया
mera bhi blog visit karen aur meri kavita dekhe.. uchit raay de...
www.pradip13m.blogspot.com
bahut achi rachna..
heard tonight at some radio channel...ur latest album with shilpa rao is really good..
i always thought ki writers can never ever gain my attention,,,bt u proved me rong....and i m so sirprised on me...ki mai kisi writer ka likha hua matter itne interest se dhund dhund ke parh rahi hu....
i always thought that any writer can never ever gain my attention,,,bcoz i thought always ki they r very boring by personality.....bt u really proved me rong,,,and i m so sirprised on me ki mai aaj ki date me kisi writer ka matter itne interest se parhti hu,dat too search ker ker ke...
One of the best from your pen sir... Beautiful :)
sirji maza aagaya padh ke naye varsh ki subheksha!
Kammal...Lajawaab... Hairat hai,kis tarah kisi aur k alfaaz kinhi aur ki zindgi ka tana-bana banke unke apne ho jaate hain...this is wonderful... i jst love it...:)thanx very much for sharing this wid us...tc:)
very nice Nileshji.
Really a very nice ghazal.
lovely lines sir
mai apane yaado me bahkti rahi.....
na jaane kab ye din gujare,,,,,
na jaane kab raat hui.......
par wo sham na dubara aayi,na aayegi.....
jab vo hawa chalegi firse,,,,
intzaar me uss pal ke,,,,kab ye saal beeta kuch pta na chala........!!!!!!!!!!
OO SAGAR KAY MAHJHI......
PATZHAR KA MATLAB PHIR SAWAN AANA HAI.........
dard se dard ka ye rishta hai gazab
hamen bada garv hai,ki dost hamara hai gazab,
dua hai ye,ki dard chod jaye,
aapke daman mein hazaron khushiyon ke phool mehkey hardum
dard se dard ka ye rishta hai gazab
hamen bada garv hai,ki dost hamara hai gazab,
dua hai ye,ki dard chod jaye,
aapke daman mein hazaron khushiyon ke phool mehkey hardum
नीलेश जी ,
क्या खूब लिखा है आपने. एक नया साल कितनी उमंगें लाता है तो साथ ही रिश्तों के असमंजस भी छोड़ जाता है, कुछ टूटते ,कुछ बनते ,कुछ संवारते रिश्ते. लेकिन किसी टूटते रिश्ते को हम कब तक साथ ढोते चलेंगे, उससे कब तक हम नफरतें करते रहेंगे, जरूरी तो रिश्ते के टूटने का कारण जानना और उस साथी को माफ़ कर देना है. उसकी- हमारी गलती भुला देना ही उस टूटे रिश्ते का मरहम है.
आपने ठीक ही कहा है किसी रिश्ते को निभाने के कोई स्पष्ट सलीके और तरीके नहीं होते, प्यार का कोई कठोर शिष्टाचार नहीं होता कि रिश्ते को निभाते रहा जाए. रिश्तों को निभाने कि कोई स्पष्ट परिभाषा भी नहीं है, जो आज के दौर मै मुकम्मल कर ली गई है कि पैसा -दौलत -शोहरत आदि हो. रिश्ता तो दिल से अपना बनता है और दिल से ही बेगाना. इसलिए आपने क्या खूब लिखा है-: ''मुझको न देख तू, बेगाना मै' .लाजवाब नीलेश जी, मै आपका कायल हूँ.
आपकी यह पंक्तियाँ आज के युग में संबंधों और प्रेम के निर्वाह को मार्मिकता से प्रस्तुत करने वाली आधुनिक हिंदी साहित्य कि ऊल्लेखनीय कविता है.
-अंकुर सुषमा नाविक. उम्र १८ वर्ष मात्र, हिंदी कहानीकार व कवी-गीतकार. मो 7869279990 ,9893404377 ,
नीलेश जी ,
क्या खूब लिखा है आपने. एक नया साल कितनी उमंगें लाता है तो साथ ही रिश्तों के असमंजस भी छोड़ जाता है, कुछ टूटते ,कुछ बनते ,कुछ संवारते रिश्ते. लेकिन किसी टूटते रिश्ते को हम कब तक साथ ढोते चलेंगे, उससे कब तक हम नफरतें करते रहेंगे, जरूरी तो रिश्ते के टूटने का कारण जानना और उस साथी को माफ़ कर देना है. उसकी- हमारी गलती भुला देना ही उस टूटे रिश्ते का मरहम है.
आपने ठीक ही कहा है किसी रिश्ते को निभाने के कोई स्पष्ट सलीके और तरीके नहीं होते, प्यार का कोई कठोर शिष्टाचार नहीं होता कि रिश्ते को निभाते रहा जाए. रिश्तों को निभाने कि कोई स्पष्ट परिभाषा भी नहीं है, जो आज के दौर मै मुकम्मल कर ली गई है कि पैसा -दौलत -शोहरत आदि हो. रिश्ता तो दिल से अपना बनता है और दिल से ही बेगाना. इसलिए आपने क्या खूब लिखा है-: ''मुझको न देख तू, बेगाना मै' .लाजवाब नीलेश जी, मै आपका कायल हूँ.
आपकी यह पंक्तियाँ आज के युग में संबंधों और प्रेम के निर्वाह को मार्मिकता से प्रस्तुत करने वाली आधुनिक हिंदी साहित्य कि ऊल्लेखनीय कविता है.
-अंकुर सुषमा नाविक. उम्र १८ वर्ष मात्र, हिंदी कहानीकार व कवी-गीतकार. मो 7869279990 ,9893404377 ,
नीलेश जी ,
क्या खूब लिखा है आपने. एक नया साल कितनी उमंगें लाता है तो साथ ही रिश्तों के असमंजस भी छोड़ जाता है, कुछ टूटते ,कुछ बनते ,कुछ संवारते रिश्ते. लेकिन किसी टूटते रिश्ते को हम कब तक साथ ढोते चलेंगे, उससे कब तक हम नफरतें करते रहेंगे, जरूरी तो रिश्ते के टूटने का कारण जानना और उस साथी को माफ़ कर देना है. उसकी- हमारी गलती भुला देना ही उस टूटे रिश्ते का मरहम है.
आपने ठीक ही कहा है किसी रिश्ते को निभाने के कोई स्पष्ट सलीके और तरीके नहीं होते, प्यार का कोई कठोर शिष्टाचार नहीं होता कि रिश्ते को निभाते रहा जाए. रिश्तों को निभाने कि कोई स्पष्ट परिभाषा भी नहीं है, जो आज के दौर मै मुकम्मल कर ली गई है कि पैसा -दौलत -शोहरत आदि हो. रिश्ता तो दिल से अपना बनता है और दिल से ही बेगाना. इसलिए आपने क्या खूब लिखा है-: ''मुझको न देख तू, बेगाना मै' .लाजवाब नीलेश जी, मै आपका कायल हूँ.
आपकी यह पंक्तियाँ आज के युग में संबंधों और प्रेम के निर्वाह को मार्मिकता से प्रस्तुत करने वाली आधुनिक हिंदी साहित्य कि ऊल्लेखनीय कविता है.
-अंकुर सुषमा नाविक. उम्र १८ वर्ष मात्र, हिंदी कहानीकार व कवी-गीतकार. मो 7869279990 ,9893404377 ,
नीलेश जी ,
क्या खूब लिखा है आपने. एक नया साल कितनी उमंगें लाता है तो साथ ही रिश्तों के असमंजस भी छोड़ जाता है, कुछ टूटते ,कुछ बनते ,कुछ संवारते रिश्ते. लेकिन किसी टूटते रिश्ते को हम कब तक साथ ढोते चलेंगे, उससे कब तक हम नफरतें करते रहेंगे, जरूरी तो रिश्ते के टूटने का कारण जानना और उस साथी को माफ़ कर देना है. उसकी- हमारी गलती भुला देना ही उस टूटे रिश्ते का मरहम है.
आपने ठीक ही कहा है किसी रिश्ते को निभाने के कोई स्पष्ट सलीके और तरीके नहीं होते, प्यार का कोई कठोर शिष्टाचार नहीं होता कि रिश्ते को निभाते रहा जाए. रिश्तों को निभाने कि कोई स्पष्ट परिभाषा भी नहीं है, जो आज के दौर मै मुकम्मल कर ली गई है कि पैसा -दौलत -शोहरत आदि हो. रिश्ता तो दिल से अपना बनता है और दिल से ही बेगाना. इसलिए आपने क्या खूब लिखा है-: ''मुझको न देख तू, बेगाना मै' .लाजवाब नीलेश जी, मै आपका कायल हूँ.
आपकी यह पंक्तियाँ आज के युग में संबंधों और प्रेम के निर्वाह को मार्मिकता से प्रस्तुत करने वाली आधुनिक हिंदी साहित्य कि ऊल्लेखनीय कविता है.
-अंकुर सुषमा नाविक. उम्र १८ वर्ष मात्र, हिंदी कहानीकार व कवी-गीतकार. मो 7869279990 ,9893404377 ,
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