Sunday, October 4, 2009

पिताजी की कविता

दोस्तों,

मेरे पिताजी डाक्टर एस बी मिश्रा एक रिटायर्ड भूगर्भ शास्त्री (geologist) हैं। उनकी किताब "Story of an Ordinary Indian" अगले वर्ष Roli Books द्वारा प्रकाशित होगी। उन्होंने एक कविता लिखी, यहाँ प्रस्तुत है ...
यहाँ पढ़ें एक पुरानी पोस्ट :
http://rovingwriter.blogspot.com/2008/04/my-father-dr.html

और ये रही कविता:

शेख चिल्ली की तरह मैं सोचता हूँ बैठकर
बंद आँखों से कभी मैं देखता सपने मुंगेरीलाल के
गरीबों के खजाने की अगर चाभी हमारे पास आ जाये
फैसले करने की बड़ी कुर्सी हमारे हाथ लग जाये
देश के हर पार्क में मैं तुदुधुत्तू बनाऊंगा
हर सड़क पर, हर गली में मूर्तियाँ अपनी लगाऊंगा
कौन पूछेगा मुझे मरने के बाद
कौन पहचानेगा कुर्सी चली जाने के बाद
इसलिए मैं मूर्तियाँ अपनी सजा लूं
फूल मालाएं चढाकर आरती अपनी करा लूं
और यदि फुरसत मिले तो बैंक के ही लकारों को
दूं बना अपनी तिजोरी
और अपनी गाय बकरी कूकुरों के नाम
से खाते खुलाऊँ
याद है ना देश का फक्कड़ फकीर
नाम जिसका था कबीर
कह गया माया ठगिन है
इसलिए मैं दूर माया से रहूँगा
बस ढेर माया के लगाउंगा
(All photos by the author, except when credit mentioned otherwise)