सोचता हूँ कि काश तुम होते
कम से कम तन्हा ना ये ग़म होते
सोचता हूँ कि वो कैसे टूटा
क्यूँ ना जाना कि रिश्ता कांच का था
गीली मिट्टी की तरहा फिसल गया
दोष मिट्टी का था कि हाथ का था?
काश इतने सवाल ना होते
कुछ तो तकलीफज़दा कम होते
सोचता हूँ कि काश तुम होते
कम से कम तन्हा ना ये ग़म होते
सोचता हूँ कि कैसे होगे तुम
जो मिलूंगा तो क्या कहोगे तुम
जो कहूँगा, कि याद करते हो?
सच कहोगे कि चुप रहोगे तुम?
काश फिर याद के कोहरे होते
काश फिर बातों के मौसम होते
सोचता हूँ कि काश तुम होते
कम से कम तन्हा ना ये ग़म होते
8 comments:
bahut khoob Neelesh ji..!!
bahut khoob neelesh ji..!!!
Absolutely brilliant. SIGH!
You stole my emotions, Neelesh... and sculpted them into words... kyon ki humbhi kayee aise hi kuch sawaalon mein ji rahein hain...
अगर गम न होते तो आपकी ये नज्म भी न होती...
बहुत ही खुबसूरत है सर....
कुछ पंक्तियाँ बढ़ाने का मन कह रहा है.
सोचता हूँ काश तुम होते,
कोहरे के उस पार तुम होते...
पलकों के साथ तुम होते,
दिन-रात काश;
साथ तुम होते.
गम के अँधेरे में साथ तुम होते,
बारिश की मौसम में साथ हम होते...
उसकी बातें सुनने, हंसने
को साथ तुम होते...
वो गिरती, उसके आंसूं,
पोंछने को साथ तुम होते...
सोचता हूँ कि काश तुम होते
कम से कम तन्हा ना ये ग़म होते.
सोचता हूँ कि काश तुम होते
कम से कम तन्हा ना ये ग़म होते..kya baat hai..
YOU SAY NICE NELESH SIR, KAYAL HO GYE AAPKE
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