प्यारे श्री शाह रुख खान जी,
हमारा नाम सड़क छाप है और हम एक टुटपुंजिया टाइप निठल्ले राईटर हैं। गाँव शहर भटकते हैं और बेमतलब की बकबक करते हैं। जहाँ बन पड़े किसी ढाबे पे बैठ के इधर की उधर करते हैं। पिछले दिनों हम होली की शौपिंग करने जेब में सौ रुपैय्ये ले कर टहलते हुए मार्किट गए हुए थे कि देखा कि कोई चीज़ है जो धड़ाधड़ बिक रही है।
शाह जी, आप तो जानते ही हैं, और शायद ना भी जानते हों, कि हम बड़े लालची और मुफतखोर टाइप के आदमी हैं। हमें मुफ्त की, सस्ती वाली, एक के साथ एक फ्री मिलने वाली, हर वस्तु पसंद है। हम तो एक बार दस बाल्टियाँ खरीद लाये थे क्यूंकि उनके साथ दस बाल्टियाँ और मुफ्त मिल गयी थीं। ये अलग बात है कि हम उसके कई दिन बाद तक नहा नहीं पाए थे क्यूंकि बाथरूम में बीस बाल्टियाँ किसी तरह अटाने के बाद हमारे पर्सनल नहाने के लिए कोई जगह ही नहीं बची थी। खैर कहने का मतलब ये है कि हम भी लालच के चक्कर में दूकान में बाहें चढ़ा के, कुहनी भांज के, सबसे अन्दर पहुँच गए।
अन्दर क्या देखते हैं कि आप गोरे होने की क्रीम बेच रहे हैं। आप क्रीम के डब्बे पर छाये हुए हैं और सब तरफ त्राहि त्राहि मची हुई है कि किसी तरह गोरेपन की क्रीम मिल जाए और वो सब उसको चुपड़ चुपड़ के अपने कालेपन को त्याग के गोरेपन यानि सुन्दरता को प्राप्त हो जाएँ।
उधर जॉन अब्राहम जी, कटरीना कैफ जी, दीपिका पादुकोन जी, सोनम कपूर जी भी यही गोरेपन का अमृत डिबिया में बंद कर के बाँट रहे हैं। हम एक दिन पान की दूकान पे खड़े थे कि हमने सोचा इतने बड़े बड़े लोग अगर इतना बड़ा बीड़ा उठा रहे हैं तो हम अपना पान का बीड़ा उठाकर इनके ही साथ चल दें।
किन्तु शाह जी, आप तो जानते ही हैं -- और शायद न भी जानते हों -- कि हम थोडा ढीठ टाइप हैं।
अगले दिन हम होली के शुभ अवसर पर ट्रेन में रिज़र्वेशन न मिल पाने के कारण गुसलखाने के बाहर हिलते डुलते, लोगों का लात कुहनी खाते चले आ ही रहे थे कि लगभग संडीला स्टेशन से डेढ़ किलोमीटर दूर -- अरे चलिए दो किलोमीटर होगा -- हमें आत्मज्ञान प्राप्त हुआ। आत्मज्ञान यूँ कि इतने बड़े बड़े लोग -- जो अमीर भी हैं, खूबसूरत भी हैं, अकलमंद भी हैं, चुस्त भी हैं, तंदुरुस्त भी हैं -- ये लोग भेड़ चाल में चल के भेड़ के कलर के पीछे पागल हुए जा रहे हैं, ये क्या भेड़ का प्रोमोशन कर रहे हैं या भेड़ियों का?
क्या पूछ रहे हैं? भेड़िया कौन? अरे भेड़िया वो जो सांवली महिला को देख के मन के नाखून निकाल के कहे, "कितनी काली बदसूरत लड़की!"
जब तक ट्रेन संडीला स्टेशन से निकली, और जब तक दो बार चैन पुलिंग हुई और आखिरकार लोग पूड़ी सब्जी निकाल के सेटल हो गए, हमने एक बहुत बड़ा फैसला ले लिया था।
शाह जी, हमने आपके खिलाफ विद्रोह करने का फैसला ले लिया था।
हमने जॉन अब्राहम जी, कटरीना कैफ जी, दीपिका पादुकोन जी और सोनम कपूर जी के खिलाफ विद्रोह का फैसला ले लिया था।
हम जब अपने गाँव पहुंचे तो हमने रणनीति बनानी शुरू की। हम गाँव की पुलिया पे पहुंचे और वहां बैठ गए। थोड़ी देर में गाँव के सारे निकम्मे लड़के धीरे धीरे वहां इकठ्ठा हो गए। लड़कियां वहां से गुज़रती रहीं और वो सीटियाबाजी करते रहे। कभी कहते "अरे गोरी, इधर भी देख लो!" कभी कहते "ओये कल्लू तेरी वाली आ गयी!" कभी कहते "कल्लो तुझे कहाँ मिलेगा कोई!"
थोड़ी देर बाद हमने लड़कों को एक ऑफर दिया। और उन्होंने ऑफर क़ुबूल कर लिया। लफंगे थे आखिर।
होली आई और गुज़र गयी। लोगों ने उबटन से रंग छुड़ा लिया, नहा लिया, नए कपड़े पहन लिए। दोपहर बाद सारे गाँव ने एक अजीब नज़ारा देखा। दस लड़के साफ़ कपडे पहने, लेकिन चेहरे पर काला रंग रंग के घूम रहे थे। लोग उन्हें घूर रहे थे, हंस रहे थे, लेकिन वो लड़के मजबूरन वैसे ही चले जा रहे थे।
एक दिन बीता, फिर दो, फिर तीन, फिर एक हफ्ता बीत गया। सारे लड़कों के चेहरे पे काला रंग चढ़ा रहा। कोई कहता "ओये कल्लू! कहाँ जा रहा है!" तो कोई कहता "अरे रात में बाहर मत निकलना! दिखेगा नहीं!"
एक हफ्ते बाद उन्हें ऑफर के हिसाब से हमने एक एक हज़ार रुपये दे दिए। शाह जी, हमने अपनी एक महीने की तनख्वाह आपके खिलाफ अपने विद्रोह पे कुर्बान कर दी थी। पर हम जीत गए। उस दिन के बाद वो शर्मिंदा लड़के कभी उस पुलिया पे नहीं बैठे। कभी किसी लड़की को छेड़ा नहीं, किसी को "ओये कल्लो!" कह के भी नहीं पुकारा। शायद वो जान गए थे कि तानों के तीर कितना गहरा चुभते हैं।
शाह जी, आप तो इतने बढ़िया आदमी हो, इतनी अच्छी अच्छी बातें करते हो, लाखों लोग आप जैसा बनना चाहते हैं, आप जो करें वो करना चाहते हैं, आपको अपने पॉवर का अंदाज़ा होगा ना? आप ज़िन्दगी बदल सकते हैं। आपके नाम का टिकट छप सकता है। आप दिन को अगर रात कहें तो बाई गॉड सब रात कहेंगे।
तो क्यूँ दुनिया को आप ये बताते हो शाह जी, कि उन्हें गोरा होना है तो क्रीम लगानी चाहिए?
काश आप और जॉन अब्राहम जी, कटरीना कैफ जी, दीपिका पादुकोन जी और सोनम कपूर जी टीवी पे आके कहते, "ये सांवलेपन की क्रीम है, इसे लगा के आप सुन्दर हो जाएँगे।"
तब हम कहते श्री शाह रुख खान जी, कि आपने दुनिया बदल दी। तब हम कहते कि टीवी पे सिर्फ ये कहने से नहीं होता है कि हीरोइन का नाम मेरे पहले आएगा, बल्कि औरतों के गोरे काले के भेद की दीवार में भेद करने से होता है।
तब हम कहते, शाह जी, कि हम आपके फैन हो गए।
आपका
सड़क छाप