Tuesday, March 26, 2013

इस होली मैं सबका मुंह काला कर रहा हूँ

प्यारे श्री शाह रुख खान जी,
हमारा नाम सड़क छाप है और हम एक टुटपुंजिया टाइप निठल्ले राईटर हैं।  गाँव शहर भटकते हैं और बेमतलब की बकबक करते हैं। जहाँ बन पड़े किसी ढाबे पे बैठ के इधर की उधर करते हैं। पिछले दिनों हम होली की शौपिंग करने जेब में सौ रुपैय्ये ले कर टहलते हुए मार्किट गए हुए थे कि देखा कि कोई चीज़ है जो धड़ाधड़ बिक रही है।
शाह जी, आप तो जानते ही हैं, और शायद ना भी जानते हों, कि हम बड़े लालची और मुफतखोर टाइप के आदमी हैं। हमें मुफ्त की, सस्ती वाली, एक के साथ एक फ्री मिलने वाली, हर वस्तु पसंद है। हम तो एक बार दस बाल्टियाँ खरीद लाये थे क्यूंकि उनके साथ दस बाल्टियाँ और मुफ्त मिल गयी थीं। ये अलग बात है कि हम उसके कई दिन बाद तक नहा नहीं पाए थे क्यूंकि बाथरूम में बीस बाल्टियाँ किसी तरह अटाने के बाद हमारे पर्सनल नहाने के लिए कोई जगह ही नहीं बची थी।  खैर कहने का मतलब ये है कि हम भी लालच के चक्कर में दूकान में बाहें चढ़ा के, कुहनी भांज के, सबसे अन्दर पहुँच गए।
अन्दर क्या देखते हैं कि आप गोरे होने की क्रीम बेच रहे हैं। आप क्रीम के डब्बे पर छाये हुए हैं और सब तरफ त्राहि त्राहि मची हुई है कि किसी तरह गोरेपन की क्रीम मिल जाए और वो सब उसको चुपड़ चुपड़ के अपने कालेपन को त्याग के गोरेपन यानि सुन्दरता को प्राप्त हो जाएँ। 
उधर जॉन अब्राहम जी, कटरीना कैफ जी, दीपिका पादुकोन जी, सोनम कपूर जी भी यही गोरेपन का अमृत डिबिया में बंद कर के बाँट रहे हैं। हम एक दिन पान की दूकान पे खड़े थे कि हमने सोचा इतने बड़े बड़े लोग अगर इतना बड़ा बीड़ा उठा रहे हैं तो हम अपना पान का बीड़ा उठाकर इनके ही साथ चल दें।
किन्तु शाह जी, आप तो जानते ही हैं -- और शायद न भी जानते हों -- कि हम थोडा ढीठ टाइप हैं।
अगले दिन हम होली के शुभ अवसर पर ट्रेन में रिज़र्वेशन न मिल पाने के कारण गुसलखाने के बाहर हिलते डुलते, लोगों का लात कुहनी खाते चले आ ही रहे थे कि लगभग संडीला स्टेशन से डेढ़ किलोमीटर दूर -- अरे चलिए दो किलोमीटर होगा -- हमें आत्मज्ञान प्राप्त हुआ। आत्मज्ञान यूँ कि इतने बड़े बड़े लोग -- जो अमीर भी हैं, खूबसूरत भी हैं, अकलमंद भी हैं, चुस्त भी हैं, तंदुरुस्त भी हैं -- ये लोग भेड़ चाल में चल के भेड़ के कलर के पीछे पागल हुए जा रहे हैं, ये क्या भेड़ का प्रोमोशन कर रहे हैं या भेड़ियों का?
क्या पूछ रहे हैं? भेड़िया कौन? अरे भेड़िया वो जो सांवली महिला को देख के मन के नाखून निकाल के कहे, "कितनी  काली बदसूरत लड़की!"
जब तक ट्रेन संडीला स्टेशन से निकली, और जब तक दो बार चैन पुलिंग हुई और आखिरकार लोग पूड़ी सब्जी निकाल के सेटल हो गए, हमने एक बहुत बड़ा फैसला ले लिया था।
शाह जी, हमने आपके खिलाफ विद्रोह करने का फैसला ले लिया था।
हमने जॉन अब्राहम जी, कटरीना कैफ जी, दीपिका पादुकोन जी और सोनम कपूर जी के खिलाफ विद्रोह का फैसला ले लिया था।
हम जब अपने गाँव पहुंचे तो हमने रणनीति बनानी शुरू की। हम गाँव की पुलिया पे पहुंचे और वहां बैठ गए। थोड़ी देर में गाँव के सारे निकम्मे लड़के धीरे धीरे वहां इकठ्ठा हो गए। लड़कियां वहां से गुज़रती रहीं और वो सीटियाबाजी करते रहे। कभी कहते "अरे गोरी, इधर भी देख लो!" कभी कहते "ओये कल्लू तेरी वाली आ गयी!" कभी कहते "कल्लो तुझे कहाँ मिलेगा कोई!"
थोड़ी देर बाद हमने लड़कों को एक ऑफर दिया। और उन्होंने ऑफर क़ुबूल कर लिया। लफंगे थे आखिर। 
होली आई और गुज़र गयी। लोगों ने उबटन से रंग छुड़ा लिया, नहा लिया, नए कपड़े पहन लिए। दोपहर बाद सारे गाँव ने एक अजीब नज़ारा देखा। दस लड़के साफ़ कपडे पहने, लेकिन चेहरे पर काला रंग रंग के घूम रहे थे। लोग उन्हें घूर रहे थे, हंस रहे थे, लेकिन वो लड़के मजबूरन वैसे ही चले जा रहे थे।
एक दिन बीता, फिर दो, फिर तीन, फिर एक हफ्ता बीत गया। सारे लड़कों के चेहरे पे काला रंग चढ़ा रहा। कोई कहता "ओये कल्लू! कहाँ जा रहा है!" तो कोई कहता "अरे रात में बाहर मत निकलना! दिखेगा नहीं!" 
एक हफ्ते बाद उन्हें ऑफर के हिसाब से हमने एक एक हज़ार रुपये दे दिए। शाह जी, हमने अपनी एक महीने की तनख्वाह आपके खिलाफ अपने विद्रोह पे कुर्बान कर दी थी। पर हम जीत गए। उस दिन के बाद वो शर्मिंदा लड़के कभी उस पुलिया पे नहीं बैठे। कभी किसी लड़की को छेड़ा नहीं, किसी को "ओये कल्लो!" कह के भी नहीं पुकारा। शायद वो जान गए थे कि तानों के तीर कितना गहरा चुभते हैं।
शाह जी, आप तो इतने बढ़िया आदमी हो, इतनी अच्छी अच्छी बातें करते हो, लाखों लोग आप जैसा बनना चाहते हैं, आप जो करें वो करना चाहते हैं, आपको अपने पॉवर का अंदाज़ा होगा ना? आप ज़िन्दगी बदल सकते हैं। आपके नाम का टिकट छप सकता है। आप दिन को अगर रात कहें तो बाई गॉड सब रात कहेंगे। 
तो क्यूँ दुनिया को आप ये बताते हो शाह जी, कि उन्हें गोरा होना है तो क्रीम लगानी चाहिए?
काश आप और जॉन अब्राहम जी, कटरीना कैफ जी, दीपिका पादुकोन जी और सोनम कपूर जी टीवी पे आके कहते, "ये सांवलेपन की क्रीम है, इसे लगा के आप सुन्दर हो जाएँगे।" 
तब हम कहते श्री शाह रुख खान जी, कि आपने दुनिया बदल दी। तब हम कहते कि टीवी पे सिर्फ ये कहने से नहीं होता है कि हीरोइन का नाम मेरे पहले आएगा, बल्कि औरतों के गोरे काले के भेद की दीवार में भेद करने से होता है।
तब हम कहते, शाह जी, कि हम आपके फैन हो गए। 

आपका 
सड़क छाप 

Thursday, March 21, 2013

सड़क छाप: महिलाओं! हम अब से पुरुष दिवस मनाएंगे


चूंकि मैं आज़ाद भारत का आज़ाद नागरिक हूँ, और अपने फैसले खुद लेने का अधिकार मुझे मेरे राष्ट्र के संविधान, मेरी कानून व्यवस्था और मेरे मम्मी पापा ने दिया है,  इसलिए मैं ये फैसला सुनाना चाहता हूँ कि अब से हम महिला दिवस की टक्कर में एक पुरुष दिवस मनाएंगे।
मैं पूछता हूँ कि ये हक़ महिलाओं को किसने दिया कि अपना डे खुद डिक्लेअर कर लें? हद होती है!
मैं इसकी भर्त्सना करता हूँ, निंदा करता हूँ, इसके खिलाफ एक प्रस्ताव पारित करता हूँ और वो सारी भारी भरकम शब्दों वाली दफ़्तरी चीज़ें करता हूँ जो हम टीवी न्यूज़ पर सुनते हैं पर समझ नहीं आतीं।
महिलाओं के इस फैसले की भर्त्सना करने के बाद अब हम पुरुष दिवस मनाने की तय्यारी शुरू करते हैं।
हम इस अवसर पर एक भव्य समारोह करेंगे और ऐसे पुरुषों का आदर करेंगे जिन्होंने पुरुष होने का धर्म बखूबी निभाया हो। इस कसौटी पर खरे उतरने के लिए उन्हें कुछ शर्तें पूरी करनी होनी। मुझे यकीन है कि भारत में गली गली में ऐसे पुरुष मिल जायेंगे जो ये शर्तें पूरी करते हों, और हमारे पास करोड़ों आवेदन आयेंगे, लेकिन फिर भी शर्तें गिना देता हूँ: 
1. पहली ये कि उन्हें चाय बनानी आती हो और वे अपनी माताजी, बहन अथवा पत्नी को चाय बना के पिलाते हों। अब मैं जानता हूँ हम मर्द धूर्त होते हैं और इस काम से बचने के लिए बहाने या शॉर्ट कट ढून्ढ लेंगे। इसलिए इस शर्त के अन्दर भी एक शर्त ये बनाई जा रही है कि चाय बाक़ायदा गैस पर चढ़ा कर, पानी-पत्ती-अदरक-दूध सब दाल के, उबाल के, छान के, बनाई गयी हो। टी बैग अथवा बटन दबा कर किसी यन्त्र की सहायता से बनाई गयी चाय मान्य नहीं होगी।
2. बेहतर तो यह रहेगा कि वे गालियाँ न देते हों, लेकिन अगर ये बचपन की गन्दी आदत जाने को तैयार ही न हो, तो वे कम से कम गालियों  में महिलाओं को न घसीटते हों। और गालियाँ अगर दें तो आईने के सामने ही दें, किसी और पर सार्वजानिक रूप से ये प्रयोग करना हमें अधिक ठीक नहीं लगता। पता नहीं आप लोगों ने नोटिस किया होगा कि नहीं, कि लगभग भारत की सारी भाषाओँ में महिलाओं के जिक्र के बिना गालियाँ जैसे अधूरी ही लगती हैं ... हम कहते हैं महिलाएं महत्वपूर्ण हैं, बहुत महत्वपूर्ण हैं, लेकिन इतनी भी नहीं। ठीक है? 
3. अगर आप पिता हैं तो बेटे और बेटी में भेद न करते हों। ये नहीं कि बेटे को नए जूते दिला दिए और बेटी से कह दिया कि भैया को स्पोर्ट्स डे पर ज़रुरत है, तुम्हें बाद में दिला देँगे। बेटा तो डाक्टरी और इंजीनियरी करने के लायक समझा जाता है और बेटी किसी छोटी मोटी नौकरी के।
4. आप सार्वजनिक स्थानों में महिलाओं को घूरते न हों और छींटाकशी न करते हों। आप में से जो इंग्लिस माध्यम के लोग छींटाकशी करते होंगे किन्तु इस शब्द का मतलब नहीं जानते होंगे, उन्हें बता दूं कि इस का मतलब होता है लड़कियां छेड़ना। चूंकि हमारे फिल्मी गानों, टीवी सीरियलों और फिल्मों में इस क्रिया अथवा हरकत को काफी अच्छी चीज़ बताया जाता है, इसलिए शायद आपको लगता होगा कि सीटियाबाजी के लिए इंडिया में कोई इनाम मुक़र्रर है। लेकिन ऐसा है नहीं। अगर आप लड़कों पे सीटियाबाजी करना चाहते हैं तो हम फिर भी आपको कंसिडर कर सकते हैं।
5. ऐसा न करते हों कि परिवार की महिलाएं परिवार के पुरुषों के बाद खाना खाएं। ऐसा करने से आप पुरुष दिवस पर मैडल पाने से वंचित रह जायेंगे।
6. अगर आपने कभी अपनी पत्नी पे हाथ उठाया हो ता तो बाई गॉड आप गए काम से। आप को इनाम मिलना तो दूर आपको ब्लैकलिस्ट कर दिया जाएगा और आप राशन कार्ड लेने तक के लायक नहीं माने जायेंगे। लेकिन मैं जनता हूँ आप ऐसा कभी नहीं करेंगे, कभी नहीं करते होंगे।
मैं जानता हूँ कि बड़ी आसान शर्तें हैं। आप में से लाखों, करोड़ों पुरुष इन शर्तों पर खरे उतरेंगे और एक बड़ा ही दिलचस्प मुकाबला होने जा रहा है! अब देखिएगा, ये महिला दिवस तो धरा का धरा रह जाएगा। हमारा पुरुष दिवस इतना लोकप्रिय हो जाएगा कि टीवी चैनेल वाले दौड़े चले आयेंगे हमारे पीछे सरपट सरपट! 
पुरुष दिवस के इस पुरस्कार वितरण समारोह को और भी रोमांचक बनाने के लिए हम एक बड़ा अनूठा प्रयोग करेंगे -- हम महिलाओं की जूरी बनायेंगे! आखिर ये महिलाएं भी तो देखें कि कितने काबिल लोग भरे पड़े हैं हम पुरुषों में! हद है, बेकार में ये हमें जब देखो विलेन बताती रहती हैं! जैसे हम मेले वाला वो बबुआ हों जिसे जो देखो घूँसा जमा के चला जाता है!
तो भाइयों जल्दी जल्दी भेजिए अपने फॉर्म! मुझे यकीन है कि आप सारी शर्तें पूरी करते हैं! अपनी एक तस्वीर भी साथ भेजिएगा ताकि अख़बार में बढ़िया चकाचक छप सके! मैं जानता हूँ कि आप महिलाओं की इज्ज़त करते हैं, आप कभी गड़बड़ शड़बड़ गालियाँ नहीं बकते हैं, आप कभी महिलाओं को बुरी नज़र से नहीं देखते हैं! मैं जानता हूँ कि ये आपके विरुद्ध चलाया गया झूठे आरोपों का पुलिंदा एक पल में ढेर हो जाएगा जब पुरुष दिवस के अवसर पर हम पुरुष गर्व के साथ अपने भले होने का सबूत देंगे!
अरे जल्दी कीजिये भाई, आवेदन भरने की सीमा समाप्त होने वाली है!
... अरे मैंने कहा जल्दी भेजिए अपने नाम, आप सब ही तो ये शर्तें पूरी करते होंगे?
... अरे दोस्तों जल्दी कीजिये!
दोस्तों! मेरे साथी पुरुषो! क्या हमारी नाम कट जाएगी इन महिलाओं के सामने? क्या आप पुरुष दिवस के लिए आने वाले अतिथियों के लिए आर्डर किया गया बिस्कुट चाय समोसा बेकार जाएगा?
अरे क्या कोई भी पुरुष हिंदुस्तान में ये शर्तें पूरी नहीं करता????

... दोस्तों ... चूंकि मैं आज़ाद भारत का आज़ाद नागरिक हूँ, और अपने फैसले खुद लेने का अधिकार मुझे मेरे राष्ट्र के संविधान, मेरी कानून व्यवस्था और मेरे मम्मी पापा ने दिया है,  इसलिए मैं ये फैसला सुनाना चाहता हूँ कि मेरे पहले फैसले को निरस्त किया जाता है। 

पुरुष दिवस कैंसिल।
 
आपका 
सड़क छाप 
www.gaonconnection.com 
(All photos by the author, except when credit mentioned otherwise)