एक कहानी और मैं
ज़िद पे अड़े
दोनों में से कोई ना
आगे बढ़े
वो है कहती क्या समझता
ख़ुद को तू?
मैं नहीं तो क्या है तू
ऐ नकचढ़े?
वो ये चाहे अपनी किस्मत
ख़ुद लिखे
मैंने बोला देखे तुझ
जैसे बड़े
है क़लम मेरी, मैं जो
चाहे लिखूं!
मेरी मर्ज़ी, जिस तरफ ये
चल पड़े!
झगड़ा ना सुलटेगा लगता
सारी रात
देखते हैं होगा क्या जब
दिन चढ़े
हैं हज़ार-एक लफ्ज़ लिख के
हम खड़े
एक कहानी और मैं
ज़िद पे अड़े
4 comments:
hmmm...complicated situation between you and your story. Aur is zid ki wajah se ek Kavita ur nikal aayi :P "Agar jhagda karne se kuchh achchha hota hai to...jhagdna achchha hai naa ??" :D (Jaise ki daag achchhe hote hain..Surf Exel ;-))
neelesh aap ki kahani se lagta hai yeh kavita race jeet gayi....kudos !
kahani na sahi kavita hi ban gayi !!
Neelesh ji!! Khubsurat..
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