Monday, September 19, 2011

आज मंडे को इक ख़याल आया

आज मंडे को इक ख़याल आया
थका बुझा सा खस्ताहाल आया
कहे "शायर जी, दे दो शक्ल मुझे"
मैंने बोला, खुदा दे अक्ल तुझे
बंदा गुस्से में मुझसे कहता है
अगरचे मैं नहीं तो तू क्या है?
तू है शायर बना तो ज़ाहिर है
कहीं पे अक्ल तू भी डाल आया
आज मंडे को इक ख़याल आया

Tuesday, August 16, 2011

जो आ जाता दबे पाओं



जो आ जाता दबे पाओं

कभी तू रौशनी के घर

अँधेरे का लगा टीका

बलाएँ तेरी ले लेते



जो आ जाता तू ले नश्तर

बिना सोचे हम अपने सर

करी हैं जो, करेगा जो

खताएँ तेरी ले लेते


जो वापस लौट आता तू
यूँ करते फिर न जाता तू
कि रस्ते तेरे ले लेते
दिशाएँ तेरी ले लेते

अँधेरे का लगा टीका

बलाएँ तेरी ले लेते ...

Friday, August 12, 2011

इक रोज़ बयाबान में ...


इक रोज़ बयाबान में
देखा तो था हैरान मैं
आकाश पे जड़ा था
बादल से जो कूदा था
तेरे ग़म का वो लम्हा था
तन्हाई का मुखड़ा था
इक मोती सा टुकड़ा था
कोई भेस नया धर के
कहीं दूर से उतरा था
कुछ और कहाँ था वो
तेरी आँख का कतरा था ...

कुछ और कहाँ था वो
तेरी आँख का कतरा था ...

Friday, July 15, 2011

बग़ावत होगी इक दिन, तब मिलेंगे

किसी ने कर दिया छलनी है मुझको

कहीं पे जा के वो बैठा हुआ है

न रो इतना, कि तेरे आंसुओं पे

मेरा कातिल कहीं पे हँस रहा है

बचा के रख तू ये तकलीफ अपनी

धधकने दे इसे, शोले खिलेंगे

बस इतना कह दे जा के रहनुमा से

बग़ावत होगी इक दिन, तब मिलेंगे

Tuesday, July 12, 2011

रात के खामोश घर के सामने


रात के खामोश घर के सामने

हाथ भर जुगनू धरे हैं शाम ने

फिर से तेरे रास्ते चलता हूँ मैं

फिर पुकारा मुझ को तेरे नाम ने

रात के खामोश घर के सामने ...

Sunday, July 10, 2011

एक कहानी और मैं ज़िद पे अड़े



एक कहानी और मैं

ज़िद पे अड़े

दोनों में से कोई ना

आगे बढ़े

वो है कहती क्या समझता

ख़ुद को तू?

मैं नहीं तो क्या है तू

ऐ नकचढ़े?

वो ये चाहे अपनी किस्मत

ख़ुद लिखे

मैंने बोला देखे तुझ

जैसे बड़े

है क़लम मेरी, मैं जो

चाहे लिखूं!

मेरी मर्ज़ी, जिस तरफ ये

चल पड़े!

झगड़ा ना सुलटेगा लगता

सारी रात

देखते हैं होगा क्या जब

दिन चढ़े

हैं हज़ार-एक लफ्ज़ लिख के

हम खड़े

एक कहानी और मैं

ज़िद पे अड़े


Thursday, February 24, 2011

यादों की पहेली को




यादों की पहेली को
कुछ इस तरह सुलझाओ
बूझो तो बूझ जाओ
वरना भुलाते जाओ

तुमने भुला दिया है
इतना यकीन है पर
मैंने भुला दिया है
इसका यकीं दिलाओ

मुझे छोड़ के गए तुम
सब ले गए थे क्यूँ तुम
इतना रहम तो कर दो
इक घाव छोड़ जाओ

कुछ नफरतें पड़ी हैं
कहीं पे तुम्हारे घर में
मेरा है वो सामां तुम
वापस मुझे दे जाओ

मेरा ग़म का खज़ाना है
तेरे पास मुस्कराहट
अपना जो है ले जाओ
मेरा जो है दे जाओ

Saturday, January 1, 2011

2011: फिर नया साल और पुराना मैं



फिर नया साल और पुराना मैं
फिर चला लेके ताना बाना मैं ...

मैंने आखिर भुला दिया है सब
तेरे सजने की कवायद की खनक
तेरी परियों की सजावट सी चमक
तेरी खामोश निगाही का सबब
तेरी दस्तक की ज़बां का मतलब
मैंने आखिर भुला दिया है सब
यूँ भी थोडा ही तुझको जाना मैं
फिर चला लेके ताना बाना मैं
फिर नया साल और पुराना मैं ...

सच तो ये है कि सच है इतना सा
आधे हम तुम थे ग़लत, आधे सही
लम्हे बिखरे थे, हमने बांधे नहीं
शाख पे दूरियों की फल आया
चख के न देखा ज़हर कितना था
सच तो ये है कि सच है इतना सा
सच से लेकिन हूँ अब डरा ना मैं
फिर चला लेके ताना बाना मैं
फिर नया साल और पुराना मैं ...

वक़्त कहता है, टूट जाऊँगा मैं
टुकड़ा इक थामे है, कालिख का है
गिर जा, हाथों पे वक़्त लिखता है
गिर के भी किरचे फिर उठाऊंगा मैं
जोड़ के खुद से खुद को लाऊंगा मैं
वक़्त कहता है, टूट जाऊँगा मैं
वक़्त की ज़िद कभी न माना मैं
फिर चला लेके ताना बाना मैं
फिर नया साल और पुराना मैं ...


मुझे है आया कहाँ प्यार का ढब
न मैंने दिल के तरीके सीखे
न ही रिश्तों के सलीके सीखे
हैं नुमाइश पे लम्हे आज भी सब
पर इन से ऊब गया जाने कब
मुझे है आया कहाँ प्यार का ढब
मुझको न देख तू, बेगाना मैं
फिर चला लेके ताना बाना मैं
फिर नया साल और पुराना मैं ...


(All photos by the author, except when credit mentioned otherwise)