चुनाव एक साल पहले हो गए, लेकिन मिली जुली सरकार आज तक न बन सकी. भाषा के नाम पर
जंग छिड़ी है. और एक पंथ के लोग एक मोहल्ले में रहते हैं, जहाँ बाहरी लोगों को बसने नहीं दिया जाता.
ये हिंदुस्तान नहीं है भैय्या, परदेस की कहानी है.
इस महीने यूरोप में हूँ. फकीरों का क्या ठिकाना, कभी यहाँ, कभी वहां.
आज कल बेल्जियम आया हुआ हूँ अपने दो प्यारे दोस्तों से मिलने. हर क़दम पर हिंदुस्तान से मिलानी करने लग जाता हूँ. पानी की बोतल खरीदने से ले कर ट्रेन के टिकट तक, सबसे पहले यूरो को रुपैय्ये में बदल कर गणित करता हूँ. मंहगा मुल्क है. धड़कन तेज़ है.
रात के साढ़े दस बजे भी दिन की रौशनी चमकती है.
परसों ब्रसेल्स के दक्षिण पूर्वी किनारे पर एक इलाके में गया.वहां एक चर्च था.
उसके बाहर ईसा मसीह की एक विशाल मूर्ति थी. लेकिन किसी शैतान ने उस मूर्ति के दोनों हाथ तोड़ दिए थे.सच कहूँ तो ये इस बँटे हुए देश की एक तस्वीर है. यहाँ भाषा के नाम पर भयंकर जंग छिड़ी हुई है. डच भाषा बोलने वाले फ्लेमिंग समुदाय के लोग -- जो लगभग साठ प्रतिशत हैं -- फ्रेंच भाषा बोलने वाले वालून समुदाय के लोगों से लगभग घृणा करते हैं. डच अधिक समर्थ हैं. उनके नेता ने हाल में राष्ट्रीय टेलीविज़न पर कहा की फ्रेंच तो अनुवांशिकी रूप से निकृष्ट हैं -- इसलिए डच उनकी मदद नहीं कर सकते.
मोहल्ले बंट गए चुके हैं, एकदम अपने अहमदाबाद की तरह.
सोचा कितना मिलता है हिंदुस्तान से, काश हम दोनों ऐसे न होते.
शहर के बाहर निकला, ट्रेन पकड़ का पेरिस गया. रस्ते में खेत देखे बड़े बड़े -- सोचा, यहाँ ज़मीन जायदाद के झगडे नहीं होते, खेत खानदानों के बढ़ने के साथ सिकुड़ते नहीं क्या? गायें थीं, मोटी मोटी. सोचा हिंदुस्तान से कितना अलग है, काश हिंदुस्तान ऐसा होता.
और फिर शाम को एक सुपरमार्केट में गया तो दिल न कहा, हिंदुस्तान ही भला. सामने एक शेल्फ पर एक छोटे से प्लास्टिक के पैकेट में गोश्त मिल रहा था, सैकडों वैसे की पकेतों की तरह.
वो एक कोयल की लाश थी.
ये हिंदुस्तान नहीं है भैय्या, परदेस की कहानी है.
इस महीने यूरोप में हूँ. फकीरों का क्या ठिकाना, कभी यहाँ, कभी वहां.
आज कल बेल्जियम आया हुआ हूँ अपने दो प्यारे दोस्तों से मिलने. हर क़दम पर हिंदुस्तान से मिलानी करने लग जाता हूँ. पानी की बोतल खरीदने से ले कर ट्रेन के टिकट तक, सबसे पहले यूरो को रुपैय्ये में बदल कर गणित करता हूँ. मंहगा मुल्क है. धड़कन तेज़ है.
रात के साढ़े दस बजे भी दिन की रौशनी चमकती है.
परसों ब्रसेल्स के दक्षिण पूर्वी किनारे पर एक इलाके में गया.वहां एक चर्च था.
उसके बाहर ईसा मसीह की एक विशाल मूर्ति थी. लेकिन किसी शैतान ने उस मूर्ति के दोनों हाथ तोड़ दिए थे.सच कहूँ तो ये इस बँटे हुए देश की एक तस्वीर है. यहाँ भाषा के नाम पर भयंकर जंग छिड़ी हुई है. डच भाषा बोलने वाले फ्लेमिंग समुदाय के लोग -- जो लगभग साठ प्रतिशत हैं -- फ्रेंच भाषा बोलने वाले वालून समुदाय के लोगों से लगभग घृणा करते हैं. डच अधिक समर्थ हैं. उनके नेता ने हाल में राष्ट्रीय टेलीविज़न पर कहा की फ्रेंच तो अनुवांशिकी रूप से निकृष्ट हैं -- इसलिए डच उनकी मदद नहीं कर सकते.
मोहल्ले बंट गए चुके हैं, एकदम अपने अहमदाबाद की तरह.
सोचा कितना मिलता है हिंदुस्तान से, काश हम दोनों ऐसे न होते.
शहर के बाहर निकला, ट्रेन पकड़ का पेरिस गया. रस्ते में खेत देखे बड़े बड़े -- सोचा, यहाँ ज़मीन जायदाद के झगडे नहीं होते, खेत खानदानों के बढ़ने के साथ सिकुड़ते नहीं क्या? गायें थीं, मोटी मोटी. सोचा हिंदुस्तान से कितना अलग है, काश हिंदुस्तान ऐसा होता.
और फिर शाम को एक सुपरमार्केट में गया तो दिल न कहा, हिंदुस्तान ही भला. सामने एक शेल्फ पर एक छोटे से प्लास्टिक के पैकेट में गोश्त मिल रहा था, सैकडों वैसे की पकेतों की तरह.
वो एक कोयल की लाश थी.
7 comments:
... घृणा करते हैं. सूरज इंसान की पहुँच से इसलिए दूर है क्योंकि सूरज इंसान के लिए बेहद जरुरी है, जिसके बगैर जीवन की कल्पना नही की जा सकती. अगर ये पास होता टू हम इससे भी वैसे ही लाश बना देते जैसे....
यह कोयल की लाश....
आपका पोस्ट पढ़ा तो वह गीत याद आ गया -
'है प्रीत जहां की रीत, सदा मैं गीत वहां का गाता हूं. भारत का रहनेवाला हूं, भारत की बात सुनाता हूं.'
संवेदना व सहिष्णुता ही तो हमें औरों से अलग पहचान देते हैं.
ख़ुदा हर फ़क़ीर को यूरोप नसीब फ़रमाये। मूर्ति के हाथ हिंदुस्तान में भी कटे हैं। कई मूर्तियों की नाक से लेकर हाथ तक भंजित किया गया है। पता नहीं कोई यहां से वहां गया था या वहां से आया था।
बड़ा बेदर्द मुल्क है बेल्जियम। बिहार से भी बदतर। कोयल की लाश को खा जाता है। धत। वापस आओ वहां से।
a short and solid piece of writing. you have touched the right cord.
want to introduce you my blog
http://naisehar.blogspot.com
have a visit..
Where are you Neelesh?
अगर संस्कृति और सभ्यता देखनी है तो भारत से बेहतर कोई जगह नही है.
अभी आईपीएल मैच के दौरान कुछ विदेशी इवेंट मैनेजरों के साथ था. वो कह रहे थे की इंडिया में लोग कैसे सिर्फ़ वेज खा कर रह लेते है. यहाँ उसे अधिकतर समय वेज खाना पर रहा था. फिर भी वह इंडियन कल्चर की तारीफ कर रहा था.
रविश भाई ने बिहार का बड़ा ही नेगेटिव इमेज बना दिया है. यह सब टीवी वालो की साजिश है.
Wonderful piece.
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