जो आ जाता दबे पाओं
कभी तू रौशनी के घर
अँधेरे का लगा टीका
बलाएँ तेरी ले लेते
जो आ जाता तू ले नश्तर
बिना सोचे हम अपने सर
करी हैं जो, करेगा जो
खताएँ तेरी ले लेते
जो वापस लौट आता तू
यूँ करते फिर न जाता तू
कि रस्ते तेरे ले लेते
दिशाएँ तेरी ले लेते
अँधेरे का लगा टीका
बलाएँ तेरी ले लेते ...
इक रोज़ बयाबान में
देखा तो था हैरान मैं
आकाश पे जड़ा था
बादल से जो कूदा था
तेरे ग़म का वो लम्हा था
तन्हाई का मुखड़ा था
इक मोती सा टुकड़ा था
कोई भेस नया धर के
कहीं दूर से उतरा था
कुछ और कहाँ था वो
तेरी आँख का कतरा था ...
कुछ और कहाँ था वो
तेरी आँख का कतरा था ...
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