Monday, June 9, 2008

एक कोयल की लाश


चुनाव एक साल पहले हो गए, लेकिन मिली जुली सरकार आज तक न बन सकी. भाषा के नाम पर
जंग छिड़ी है. और एक पंथ के लोग एक मोहल्ले में रहते हैं, जहाँ बाहरी लोगों को बसने नहीं दिया जाता.

ये हिंदुस्तान नहीं है भैय्या, परदेस की कहानी है.

इस महीने यूरोप में हूँ. फकीरों का क्या ठिकाना, कभी यहाँ, कभी वहां.

आज कल बेल्जियम आया हुआ हूँ अपने दो प्यारे दोस्तों से मिलने. हर क़दम पर हिंदुस्तान से मिलानी करने लग जाता हूँ. पानी की बोतल खरीदने से ले कर ट्रेन के टिकट तक, सबसे पहले यूरो को रुपैय्ये में बदल कर गणित करता हूँ. मंहगा मुल्क है. धड़कन तेज़ है.

रात के साढ़े दस बजे भी दिन की रौशनी चमकती है.

परसों ब्रसेल्स के दक्षिण पूर्वी किनारे पर एक इलाके में गया.वहां एक चर्च था.

उसके बाहर ईसा मसीह की एक विशाल मूर्ति थी. लेकिन किसी शैतान ने उस मूर्ति के दोनों हाथ तोड़ दिए थे.सच कहूँ तो ये इस बँटे हुए देश की एक तस्वीर है. यहाँ भाषा के नाम पर भयंकर जंग छिड़ी हुई है. डच भाषा बोलने वाले फ्लेमिंग समुदाय के लोग -- जो लगभग साठ प्रतिशत हैं -- फ्रेंच भाषा बोलने वाले वालून समुदाय के लोगों से लगभग घृणा करते हैं. डच अधिक समर्थ हैं. उनके नेता ने हाल में राष्ट्रीय टेलीविज़न पर कहा की फ्रेंच तो अनुवांशिकी रूप से निकृष्ट हैं -- इसलिए डच उनकी मदद नहीं कर सकते.

मोहल्ले बंट गए चुके हैं, एकदम अपने अहमदाबाद की तरह.

सोचा कितना मिलता है हिंदुस्तान से, काश हम दोनों ऐसे न होते.

शहर के बाहर निकला, ट्रेन पकड़ का पेरिस गया. रस्ते में खेत देखे बड़े बड़े -- सोचा, यहाँ ज़मीन जायदाद के झगडे नहीं होते, खेत खानदानों के बढ़ने के साथ सिकुड़ते नहीं क्या? गायें थीं, मोटी मोटी. सोचा हिंदुस्तान से कितना अलग है, काश हिंदुस्तान ऐसा होता.

और फिर शाम को एक सुपरमार्केट में गया तो दिल न कहा, हिंदुस्तान ही भला. सामने एक शेल्फ पर एक छोटे से प्लास्टिक के पैकेट में गोश्त मिल रहा था, सैकडों वैसे की पकेतों की तरह.

वो एक कोयल की लाश थी.

India' nuclear sham

(Goats grazing at a football field in Jharkhand's Chatigocha village; in the background, the wall of a "tailings pond" -- waste dump -- of the Jaduguda Uranium mines.)

Nearly three years ago, when Prime Minister Manmohan Singh stood on the lawns of the White House with President George W. Bush, announcing a civil nuclear deal with the US, there was another country he could have turned to for fuel for India’s N-power plants: India.

Even as it scouts for nuclear fuel from the US and elsewhere, India has been sitting on massive, untapped reserves of uranium, hundreds of tonnes of which have been discovered over the past couple of years — adding to the over 1 lakh tonnes already identified in Jharkhand, Meghalaya, Andhra Pradesh, Rajasthan and Tamil Nadu.

Together, these uranium resources would be enough to run all of India’s current and planned nuclear power plants for their entire lifetime of 40 years. In the context of the bitter political debate in India over taking N-fuel from the US, the irony is inescapable.

India’s atomic energy establishment has done next to nothing to tap deposits identified up to 15 years ago. Mining is yet to begin at several sites explored, identified and handed through the 1990s by the Atomic Minerals Directorate (AMD), the government’s uranium exploration arm, to the Uranium Corporation of India Ltd (UCIL).

Read the full story and other related text here in the Hindustan Times, where this piece first appeared.
(All photos by the author, except when credit mentioned otherwise)