Sunday, April 22, 2012

हमारे मन के कमरे में




हमारे मन के कमरे में,
यूँ इक मंज़र अनोखा हो
हवा की तेज़ लहरें हों, 
कहीं पानी का झोंका हो 
और इक लम्हे की कश्ती पे, 
कुछ इस तरहा तू बैठी हो 
वही मेरी हकीकत हो, 
वही नज़रों का धोखा हो 
हमारे मन के कमरे में, 
यूँ इक मंज़र अनोखा हो ...

8 comments:

Ankur Sushma Navik said...

aisa manzar haqiqat main hota hai sir ji ! hum hi samajh nahi pate hai, is dariya-e-jahaan main khokar hum sab bhuul jaate hai, is manzar ko yaad dilaane kaa shukriya.

Ankur Sushma Navik said...

aisaa manzar kahin hamaaudti bhaagti-doudti jindgi main kahin kho gaya hai sir ji ! aapne yaad dilaa diya, ab shayad hum us manzar ko mehsuus kar paae shayad, shukriyaa !

Dr.Rajesh Kumar Singh said...

खूबसूरत कविता ...मखमली एहसास .....!!!!

ankur sushma navik said...

काश ऐसा मंज़र फिर हम ढूँड पाए , ऐसा मंज़र हमारे पास ही था लेकिन इस भाग दौड़ भरी जिन्दगी में हमने उसे खो दिया है, संवेदना के अंत होते इस युग में आपका ये मंज़र उल्लेखनीय है, इस मंज़र के खो जाने की याद दिलाने का शुक्रिया! हम शायद फिर ढूँड पाए ऐसा मंज़र, क्या पता.

ANULATA RAJ NAIR said...

very nice.........
sweetly expressed.


anu

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

मन को छू गये कविता के तार...
------
’की—बोर्ड वाली औरतें!’
’प्राचीन बनाम आधुनिक बाल कहानी।’

ANULATA RAJ NAIR said...

बहुत सुन्दर......
आप और क्यूँ नहीं लिखते....
u write so very well....

regards

anu

Anonymous said...

अरे भाई, आपका नाम क्या है वो तो ब्लाग में लिखो...

(All photos by the author, except when credit mentioned otherwise)