Thursday, May 15, 2008

हूजी, सूजी और इमोशनल पत्रकार


हिंदुस्तान का एक सरफिरा पत्रकार, मेरा दोस्त रवीश कुमार, हूजी और सूजी को पढ़ कर कुछ यूं कहता है:
"दोस्त,
टीवी बीमार हो गया है। इसका एक ही काम है दिल्ली में रोज़गार गारंटी योजना के तहत कुछ बेरोज़गारों को पत्रकार कार्ड देना।
ल्यूटियन ने नई दिल्ली वायसरायों के लिए बनाई लेकिन आजादी के बाद नेताओं और पत्रकारों ने कब्जा कर लिया। नेताओं को घर मिला और पत्रकारों को नहीं। लिहाज़ा पत्रकारों ने ल्यूटियन दिल्ली में घूमते रहने का फैसला किया। इसी ज़ोन की पत्रकारिता करने वाले दिल्ली स्थित राष्ट्रीय मीडिया में संपादक हुए।
ज़्यादा हो गए तो एक मेन संपादक बना दूसरा राजनीतिक संपादक।
इसी में एक दूसरा वर्ग है जो आगे चलकर इंवेस्टिगटिव संपादक बनता है। यह ल्यूटियन पत्रकारिता का बचा खुचा अंश है। आंतकवादी घटनाओं के प्रसार लेकिन सूचनाओं के केंद्रीकरण के कारण ऐसे पत्रकारों की अहमियत बढ़ी। फीचर वालों को ल्यूटियन ज़ोन में कुछ नहीं मिला तो गांवों का रूख ar गए।
स्माल टाउन की अवधारणा पत्रकारों की इसी जमात की देन है।
मैं कई बार कहता हूं अशोक रोड( बीजेपी दफ्तर) और अकबर रोड(कांग्रेस दफ्तर) से दो बाइट लेकर विजय चौक के बीच में खड़े होकर पीटूसी कर दीजिए, स्टोरी बन जाएगी। बयानधर्मी स्टोरी जनकल्याण के लिए ही तो होती है।बहरहाल संघीय ढांचे और गठबंधन की मजबूरी के कारण गृहमंत्रालय की भूमिका कम हुई है। लिहाज़ा इसके अफसर सूत्र बन गए हैं। इनके संपर्क में आए पत्रकार हूजी सूजी का हलवा बनाने लगे।
सबसे पहले यही खबर देते हैं कि धमाके में आर डी एक्स का इस्तमाल हुआ। शिवकाशी से लाया गया बारूद नहीं था। फटे हुए और बचे हुए बम के भीतर अणु से लेकर परमाणु तक की जानकारी यही पत्रकार देते हैं।

आप अखबार वाले इनसे जलते हैं। इस श्रेणी के पत्रकार आपके भीतर भी हैं। जब आप मुख्य पृष्ठ पर द्विखंडीत यानी टू-पीस बिकनी वाली लड़की का फोटो छाप देते हैं तब कुछ नहीं।
ख़ैर मीडिया को लेकर पत्रकारों को इमोशनल नहीं होना चाहिए। सूत्र पत्रकारिता प्रिंट की देन है। प्रिंट से आए लोगों ने जब टीवी में इसके लिए धक्का मुक्की की तब से यह सूत्र के नाम पर गुप्तचर विभाग की रिपोर्ट आम होने लगी है।
वैसे आइये हम सब मिल कर घोर निराशा के इस दौर में तमाम सूत्रों के प्रति सम्मान व्यक्त करें जिनके भरोसे लोकतंत्र का चौथा खंभा खड़ा हुआ है।
सूत्र तुम बढ़े चलो। वीर तुम बढ़े चलो!

5 comments:

Sanjeet Tripathi said...

बहुत सही!!
जनाब आपके लिखे गीतों का "पंखा" हूं, बस ऐसे ही दिल को छूने वाले गीत लिखते रहें आप!!

कृपया कमेंट बॉक्स से वर्ड वेरिफ़िकेशन हटाने का कष्ट करें!

sushant jha said...

रोचक..और एक अच्छा व्यंग्य...लेकिन सर एक अनुरोध है..अगर आप ब्लाग का बैकग्रांउड कलर ठीक कर दें..तो पढ़ने में कठिनाई न हो....

Writer At Large said...

संजीत भाई,

तारीफ का बहुत बहुत शुक्रिया.
मैं शीघ्र ही अपने कुछ गीत ब्लॉग पर डालने वाला हूँ. शायद आपको और अन्य साथियों को आनंद आए.
आपके आदेशानुसार वर्ड वेरीफिकेशन हटा दिया है.


सुशांत भाई,

तारीफ के लिए आपका भी बहुत धन्यवाद. मैंने रंग बदलने की कोशिश की, लेकिन पता नहीं काला रंग मुझे पसंद है. मैंने अक्षरों का रंग हल्का करने की कोशिश की है, बतैयेगा क्या पढने मैं कुछ आसानी होती है ...

नीलेश

pawan lalchand said...

reading is still painful for eyes.. because of the colour combination ..do it alittle bit mild..

Arvind Mishra said...

नीलेश भाई,
लिखते तो बहुत से लोग हैं लेकिन आप और रवीश भाई की कलम की बात ही कुछ और है। आपके लिखे गीत मरहम का काम करते हैं। निश्चय ही आप मेरे जैसे सैकड़ों युवा पत्रकारों के प्रेरणा स्रोत हैं। आपसे एक गुजारिश थी कि मेरा नयाबरिस्ता नाम का एक ब्लॉग है। चूंकि बॉलीवुड में घोर दिलचस्पी है इस वजह से कुछ ना कुछ लिखता रहता हूं। अगर मेरी प्रविष्टियों पर आपके कमेंट आएंगे तो छोटे भाई को बहुत हौसला मिलेगा।
अरविंद मिश्रा

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